20 नवंबर 1979 विश्व इतिहास में एक ऐसा दिन था जिसने इस्लाम को पूरी तरह से हिला दिया था| इस दिन एक विद्रोही समूह ने सऊदी अरब स्थित इस्लाम के सबसे पवित्र स्थान मक्का मस्जिद को अपने कब्जे में ले लिया था, यह मंजर अगले 15 दिनों तक जारी रहा| इस घटना में कई लोगों की जानें गई थी|
मक्का मस्जिद पर कब्ज़ा
20 नवंबर 1979 इस्लामिक कैलेण्डर के मुताबिक साल 1400 की पहली तारीख थी| यह मुहर्रम का दिन था| सामान्य दिनों की तरह इस दिन भी हज करने आए हजारों हजयात्री शाम की नमाज की तैयारी कर रहे थे, तभी भीड़ में से लगभग 200 से अधिक लोगों ने automatic guns निकाल लिए और firing चालू कर दी| उन विद्रोहियों में से एक जिसका नाम जोहेमान अल ओतायबी(Juhayman al Otaybi) था, ने इमाम से mic छीन लिया और वह mic से अरबी भाषा में घोषणा करने लगा| उसने कहा "हम महदी के आगमन का एलान करते हैं जो अन्याय और अत्याचारों के खिलाफ लड़ेंगे और धरती पर न्याय स्थापित करेंगे|" इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक महदी वह होंगे जो कयामत के दिनों(Judgement day) से पहले आएंगे और धरती पर से अन्याय को मिटा देंगे| जोहेमान ने आगे यह कहा कि महदी हमारे बीच ही है, इसके बाद जोहेमान ने अपने सरदार 'मोहम्मद अब्दुल्लाह अल खैहतानी'(Mohammed Abdullah al Qahtani) की ओर इशारा करते हुए कहा यही महदी हैं जो इस पृथ्वी से अन्याय को मिटाने के लिए आए हैं| इन सबके बीच मस्जिद में डर का भयानक माहौल बन गया था| मस्जिद में भगदड़ मचने लगा, लोग इधर-उधर भागने का प्रयास करने लगे लेकिन वह कहीं नहीं भाग सकते थे क्योंकि विद्रोही समूह ने मस्जिद को पूरी तरह से अपने कब्जे में ले लिया था| मस्जिद की मीनारों पर sniper guns तैनात कर दिए गए| लोगों को लगने लगा था कि अब यह कयामत के दिनों की शुरुआत है इसीलिए अधिकांश लोगों ने भी अब्दुल्ला खैहतानी को महदी मान लिया था, यहां तक की मस्जिद में नमाज करवाने वाले इमाम 'शेख मोहम्मद अल सुबैइल'(Sheikh mohammed ap-subayil) ने भी खैहतानी को महदी स्वीकार कर लिया था|
विद्रोहियों का उद्देश्य
विद्रोहियों ने कई उद्देश्यों के कारण मक्का मस्जिद पर हमला करने की साजिश रची थी| विद्रोहियों का मानना था कि पश्चिम की सभ्यता के कारण इस्लाम की संस्कृति में नकारात्मकता का फैलाव हो रहा है जो उन्हें कतई बर्दाश्त नहीं था इसीलिए उनका कहना था कि इस्लाम के विकास के लिए यह जरूरी है कि पश्चिम के देशों से किसी प्रकार का संबंध नहीं रखा जाए| विद्रोहियों का मानना था कि सऊदी में राजशाही शासन उचित नहीं है इसीलिए यहां राजघरानों के शासन का अंत किया जाए|
सऊदी सरकार की समस्या
जब सऊदी की सरकार के पास यह खबर पहुंची कि मक्का मस्जिद पर विद्रोही समूह ने अपना कब्जा जमा लिया है तो उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई| उनका कहना था कि कोई ऐसी नीच हरकत कैसे कर सकता है? इस्लाम के सबसे धार्मिक स्थान पर कोई अपना कब्जा कैसे जमा सकता है? इस विषय को लेकर सऊदी की सरकार बहुत बड़े संकट में पड़ गई क्योंकि मक्का जैसे धार्मिक स्थान पर किसी प्रकार की कार्यवाही करना उचित नहीं था इसीलिए उन्होंने सबसे पहले इस्लाम के धर्मगुरु जिन्हें उलेमा कहा जाता है, से इस बात की इजाजत मांगी कि क्या वे मक्का मस्जिद पर कार्यवाही कर सकते हैं?इस बात पर उलेमा ने उन्हें मना कर दिया क्योंकि कहीं ना कहीं वह भी खैतानी को महदी समझ रहे थे| बाद में उन्हें यह तर्क दिए गए कि यदि खैतानी असल में महदी है तो वह इस प्रकार मस्जिद पर कब्जा कभी नहीं करता| मेहंदी का आगमन न्याय की स्थापना के लिए होगा इस प्रकार से लोगों को हानि पहुंचाने के लिए नहीं| तत्पश्चात उलेमा ने सऊदी को यह इजाजत दे दी कि वह मस्जिद पर कार्रवाई कर सकते हैं|
सऊदी की कार्यवाही
सऊदी ने कभी भी अपनी सेना नहीं रखी| सऊदी के रिश्ते अमेरिका से इतने अच्छे थे कि जब भी सेना की जरूरत पड़ती तो अमेरिका उन्हें सैन्य शक्ति प्रदान करता था| सऊदी के राजघरानों को यह लगता था कि यदि उन्होंने सऊदी में सेना रखी तो सेना कभी भी बगावत करके उनका तख्तापलट कर सकती है| हालांकि इसके बावजूद उन्होंने अपनी सुरक्षा और अन्य कार्यों के लिए नेशनल गार्डस को रखा हुआ था| मक्का मस्जिद को विद्रोही समूह से मुक्त कराने के लिए पाकिस्तान ने भी अपनी सैन्य टुकड़ी सऊदी भेजी थी इसके अलावा फ्रांस ने भी सऊदी को सहायता प्रदान की थी|
जब सऊदी ने विद्रोहियों पर हमला किया तो उनकी सेना विद्रोहियों पर बहुत भारी पड़ी| इस घमासान में मस्जिद का एक कक्ष और एक मीनार क्षतिग्रस्त हो गया| मान्यताओं के हिसाब से कितना भी भयानक युद्ध क्यों ना हो जाए महदी को कुछ भी नहीं हो सकता था लेकिन सऊदी के हमले से अब्दुल्ला खैतानी जख्मी हो गया यहां तक कि बाद में उसकी मृत्यु हुई हुई| सेना के हेलीकॉप्टर मस्जिद की चारों ओर लगातार उड़ रहे थे| सऊदी के नेशनल गार्डस पूरी तरह से विद्रोहियों पर भारी पड़ रहे थे लंबे समय तक चले इस घमासान में कई विद्रोहियों ने अपने प्राण गवाएं| बचे हुए विद्रोही अपने प्राणों की रक्षा के लिए basement में घुस गए उन्हें वहां से बाहर निकालने के लिए नेशनल गार्डस द्वारा tear gas का इस्तेमाल किया गया|
तत्पश्चात 67 विद्रोहियों ने आत्मसमर्पण कर दिया| कोई दुबारा ऐसे हरकत कभी ना कर सके इसलिए सऊदी सरकार द्वारा 9 जनवरी 1980 को 63 विद्रोहियों का जनता के समक्ष सर कलम कर दिया गया| इस घटना के पश्चात मक्का मस्जिद की सुरक्षा को लेकर कई अहम फैसले लिए गए और मस्जिद की सुरक्षा को कई गुना बढ़ा दिया गया|
लोगों की आपबीती
जो लोग इस घटना के दौरान मस्जिद में मौजूद थे उनका कहना था कि उनके लिए यह खौफनाक अनुभव आजीवन न भूलाने वाला रहेगा| उनका कहना था कि हर आधे घंटे के बाद गोलियों के चलने की आवाजें आती रहती थी जिससे कि मस्जिद के भीतर लोगों में सदैव खौफ का माहौल बना हुआ था|
क्या इतना आसान था मस्जिद पर कब्जा करना?
इस घटना को एक पूरी तरह सोची समझी साजिश के तहत अंजाम दिया गया था| कई और लोगों ने भी इन विद्रोहियों का समर्थन किया था| कुछ सुरक्षाकर्मी भी इसमें शामिल थे जिसके कारण यह लोग इतनी बड़ी मात्रा में बंदूकों को मस्जिद के अंदर ले जा पाए| मस्जिद की basement में बड़ी मात्रा में हथियारों को पहले से ही छुपाया गया था| उस समय तक सऊदी का मानना यह था कि मक्का जैसे पवित्र स्थल को कोई संकट नहीं हो सकता इसीलिए उस समय इस स्थान की सुरक्षा इतनी अधिक नहीं थी क्योंकि उस वक्त तक आतंकवाद का उदय नहीं हुआ था| उस वक्त तक मस्जिद की सुरक्षा सख्त नहीं थी किंतु इसके पश्चात मस्जिद की सुरक्षा को कई गुना अधिक बढ़ा दिया गया|






1 टिप्पणियाँ
Very informative
जवाब देंहटाएंThanks for that and keep it up
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