चीन के प्रारंभिक इतिहास से ही उस पर कई शाही राजघरानों का अधिपत्य रहा है 17 वीं शताब्दी से पूर्व 2000 वर्षों से चीन में शाही वंशों का शासन था। 17 वीं शताब्दी में क्वींग वंश (क्विंग राजवंश) ने चीन की सत्ता को मिंग वंश (मिंग राजवंश) को हरा कर जीता था। क्वींग वंश चीन पर शासन करने वाला अंतिम वंश था जिसका पतन आगे चलकर वर्ष 1911 में पूर्णतः हो गया | 

चीनी क्रांति क्या थी???

अपमान की सदी

चीन के संपूर्ण इतिहास में सन् 1829 से 1939 का समय चीन के लिए ऐसा समय था जिसने चीन को विश्व के समक्ष शर्मसार कर दिया था। सन् 1829 से 1939 के समय को चीन के लिए "अपमान की सदी" समझा जाता है | सन 1829 से पूर्व चीन ने कई लड़ाइओं को देखा और झेला था किन्तु वर्ष 1829-1939 में चीन कई ऐसे देशों से भी युद्ध में हार गया जोकि सामर्थ्य और आकार में चीन से कई गुना छोटे देश थे। 

चीन, ब्रिटेन से दो बार ओपियम युद्ध (ओपियम युद्ध) हार गया था चूंकि यह युद्ध अफीम के कारण हुआ था इसलिए इसे ओपीएम युद्ध कहा जाता है इसके अलावा चीन फ्रांस से भी युद्ध में हार गया जिसे साइनो फ्रांसीसी युद्ध (चीन-फ्रांस युद्ध) के नाम से जाना जाता है | (जिस तरह से भारत में रहने वाले को भारतीय कहते हैं उसी तरीके से चीन में रहने वाले को साइनों कहा जाता है) चीन के लिए बेहद शर्मिंदगी की बात तो तब हुई जब उस पर नज़र भी उठा कर न देखने वाले देश जापान ने चीन पर 1894 में हमला कर दिया जिसे साइनो-जापान युद्ध (चीन-जापानी युद्ध, 1894) के रूप में याद किया जाता है और इस युद्ध में चीन की बहुत बुरी हार हुई।

इन युद्धों में चीन की हार का सबसे मुख्य कारण चीन की उस वक्त की कमज़ोर नौसेना थी| उस वक्त के कवींग शासकों ने चीन की नौसेना पर तनिक भी ध्यान नहीं दिया उनकी सोच यह थी कि शत्रु सदैव जमीन के ऊपर से ही वार करता है दूसरी ओर उनका मानना ​​था कि समंदर में सिर्फ उनसे कई गुना कम सामर्थ्य वाला देश जापान ही था जो कभी भूल से भी उन पर आक्रमण नहीं करेगा, उनकी यही सोच उन पर भारी पड़ गई और उन्हें पराजय और कई सारे संधियों का सामना करना पड़ा जिसके कारण चीन के एक बहुत बड़े क्षेत्र पर विदेशी व्यापारियों ने अपना दबदबा स्थापित कर लिया | 1894 में हुए चीन-जापान युद्ध के कारण चीन को एक महत्वपूर्ण क्षेत्र जापान के हाथों गंवाना पड़ा यहां तक ​​की चीन के कुछ द्विपीय क्षेत्र जिसमें वर्तमान ताइवान भी शामिल था वे भी जापान के अधीन हो गए थे।

क्वींग वंश का पतन


20 वीं शताब्दी के आते-आते क्विंग वंश का समापन होने लगा क्विंग वंश के पतन के कई मुख्य कारण थे | चीन 19 वीं शताब्दी में कई छोटे देशों से हार चुका था और उनके साथ कई संधियों में भी बाध्य हो गया था | कई पश्चिमी देशों जैसे फ्रांस, ब्रिटेन इत्यादि ने व्यापार के बहाने चीन के कई शहरों पर अनाधिकृत रूप से अपना कब्जा जमा लिया था। क्वींग वंश के पतन का एक मुख्य कारण यह भी था कि उन्होंने आधुनिकीकरण को नहीं अपनाया, जिस समय पूरी दुनिया में औद्योगिक क्रांति अपने चरम पर थी उस वक्त भी चीन औद्योगिकरण को महत्व नहीं दे रहा था, चीन में पुराने तौर-तरीकों का प्रचलन ही रहा। इसके अलावा चीन में शासन व्यवस्था भी काफी पुराने तरीकों से ही चल रही थी | साथ ही साथ जापान की शक्तियों में भी अचानक से बहुत वृद्धि हुई जिसकी वजह से जापान ने 1894 में चीन पर हमला करने का साहस दिखाया अतः कुशल शासकों के अभाव और शंघाई क्रांति के कारण वर्ष 1911 में पूर्ण रूप से क्विंग वंश का पतन हो गया है|

वर्ष 1911 की शंघाई क्रांति 

राजतंत्र का पूर्ण रूप से समापन करने के लिए वर्ष 1911 में शंघाई क्रांति का आगाज हुआ, इस क्रांति को सफल बनाने में समाज सुधारक और राजतंत्र का विरोध करने वाले व्यक्तियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। कवींग वंश के अंतिम शासक के रूप में एक 6 साल के बालक को राजा की गद्दी पर बैठा दिया गया जिसका नाम पूई (पुई) था, खेलने कूदने की उम्र में उस बालक पर शासन व्यवस्था का बोझ डाल दिया गया। शंघाई क्रांति की तर्ज पर  राजतंत्र का समापन कर दिया गया और चीन को रिपब्लिक ऑफ चाइना घोषित कर दिया गया, नेशनल असेंबली का गठन किया गया जिसमें लोगों को वोट देने का अधिकार भी दिया गया, अगले साल 1912 में चुनाव भी आयोजित कराए गए जिसमें सन यात सेन द्वारा गठित पार्टी कुओ मिंग तांग-केएमटी ने लगभग सभी सीटें जीती | 6 साल के शासक पूई का पद समाप्त कर दिया गया और चीन में राजतंत्र का समापन हो गया |
चीन में राजतंत्र के समापन के बाद शक्तियों का विभाजन हो गय | उत्तरी चीन में युआन शिकाई (युआन शिकाइ) जोकि सेना के जनरल थे, उनका प्रभुत्व था जबकि दक्षिणी चीन में डॉ सन यात सेन (डॉ सन यत-सेन) ने अपनी सरकार बनाई थी। शिकाई का सन यात सेन से यह कहना था कि यदि उन्हें चीन को एकल चीन (एकजुट चीन) के रूप में विश्व के सम्मुख प्रस्तुत करना है तो उन्हें संपूर्ण चीन की सत्ता उन्हें सौंपनी होगी। सन यात सेन का सोचना था कि पूरी सेना का नियंत्रण युवान शिकाई के पास है इसलिए उन्हें पूरे चीन की सत्ता सौंप देनी चाहिए ताकि वे चीन को एकल चीन आसानी से बना सकें | सन यात सेन ने अपना पद त्याग दिया और सारी सत्ता युआन शिकाई को सौंप दी| उनका यह निर्णय आगे चलकर गलत साबित हुआ|

लोकतंत्र का अंत

सन यात सेन से संपूर्ण चीन की सत्ता प्राप्त करने के बाद युआन  शिकाई ने वर्ष 1915 में खुद को सम्राट घोषित कर दिया |केएमटी ने इस पर आपत्ति भी जताई और विरोध करने का भी प्रयास किया, लेकिन शिकाई ने केएमटी को राष्ट्रीय असेंबली और सरकार से बर्खास्त कर दिया, केएमटी के सदस्यों को चीन छोड़कर भागना पड़ा, सन यात सेन जापान चले गये और युवान शिकाई की मौत तक वहीं रही | वर्ष 1916 में युआन शिकाई की मृत्यु हो गई और चीन पूर्णतः बट गया| कई भागों में बटे चीन पर शक्तिशाली सरदारों का वर्चस्व हो गया | इस अवधि को चीन का "वॉरलॉड युग" कहा जाता है जोकि 1916-1928 तक चला|

राष्ट्रवादियों का प्रभुत्व 

वर्ष 1916 में युआन शिकाई की मौत के पश्चात सन यात सेन वर्ष 1917 में वापस चीन लौट आए उन्होंने 1921 तक गुआँनज़ोऊ (गुआंगज़ौ) में सरकार की स्थापना की |
सन यात सेन ने सेना को और भी मजबूत बनाने के लिए सोवियत संघ से मदद ली चूंकि वर्ष 1921 तक चीन में भी  कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) का गठन हो चुका था और सोवियत संघ का रुझान कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ था क्योंकि इन दोनों के विचारधाराएँ एक सी थी इसलिए सन यात सेन ने भी कम्युनिस्ट पार्टी से हाथ मिला लिया और दोनों एक हो गए ताकि उन्हें सोवियत संघ की मदद मिलती रहे। वर्ष 1925 में सन यात सेन की कैंसर के कारण मृत्यु हो गई जिसके बाद चियांग काई-शेक अस्तित्व में आया उन्होंने वर्ष 1926 से 1928 के बीच कई उत्तरी अभियान चलाए जिसमें वे सरदारों से युद्ध करके उस स्थान को जीतते थे ताकि  एकल चीन संभव हो सके। उनका यह अभियान सफल भी रहा है जिसके कारण वह केएमटी में उभर कर आए और उन्हें पहचान मिली|

चीन में गृह युद्ध 

चीन में गृह युद्ध राष्ट्रवादियों और कम्युनिस्टों की विचारधाराओं के कारण हुआ, उन दोनों की विचारधाराओं में जमीन आसमान का अंतर था। कम्युनिस्ट यह चाहते थे कि साभी अधिकार सरकार के पास होनी चाहिए और प्रजा को कोई अधिकार न मिले जबकि राष्ट्रवादी प्रजा को अधिकार देने के साथ थे। चियांग काई शेक कम्युनिस्टों की इस विचारधारा के पूर्ण विरोधी थे इसलिए जब वे उत्तरी अभियान से लौटे तो केएमटी से कम्युनिस्ट सदस्यों को हटा दिया गया। च्यांग काई शेक का मानना ​​था कि उनका विचारधारा वामपंथी हो चुकी है | 

चीन में गृह युद्ध का पहला चरण (1927-1937) 

राष्ट्रवादियों द्वारा कम्युनिस्टों को शहर से बहुत बुरे तरीके से भगा दिया गया | कम्युनिस्टों को अपने प्राणों की रक्षा के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में आश्रित होना पड़ा| राष्ट्रवादी और कम्युनिस्टों के बीच 36 का आंकड़ा हो गया था | ग्रामीण क्षेत्रों में रहकर कम्युनिस्टों ने गुरिला युद्ध में महारत हासिल कर ली थी | राष्ट्रवादी ने कम्युनिस्टों को गांव से भागाने के लिए कई अभियान चलाए, उन्होंने कई बार प्रयास किया | वर्ष 1934 में राष्ट्रवादियों ने कम्युनिस्टों को ग्रामीण क्षेत्र से खदेड़ने के लिए अपना पांचवा अभियान चलाया जिसमें उन्होंने कम्युनिस्टों को चारों तरफ से घेर लिया था लेकिन भाग्य से कम्युनिस्ट उनके बीच से बच निकले। उन्होंने अगले 1 साल तक 1000 किलोमीटर की यात्रा यनान पहुंचने के लिए की, जिसे "द लॉन्ग मार्च" कहा जाता है | लांग मार्च के दौरान माओ जे'डोंग जैसे व्यक्तियों ने कम्युनिस्टों का नेतृत्व किया और राष्ट्रवादियों की सेनाओं से बचते बचते यनान की पहाड़ियों में पहुंचे |

राष्ट्रवादियों और कम्युनिस्टों का संयुक्त मोर्चा (1937-1945)

वर्ष 1931 में जापान ने चीन पर हमला करके मंचूरिया के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया जोकि 1945 तक कायम रहा लेकिन इसके बाद वर्ष 1937 में जापान ने द्वितीय साइनों-जापान युद्ध का आगाज़ कर दिया जिसका अंजाम बहुत ही भयावह रहा | जापान के इस भयानक आक्रामक रवैये को देखते हुए केएमटी और सीसीपी दोनों पार्टी एक हो गई ताकि चीन को जापान के आक्रमणों से बचाया जा सके।
केएमटी पार्टी को जापान और कम्युनिस्ट दोनों से लड़ाई करनी पड़ रही थी जिसके कारण उनके पास हथियार और पैसे खत्म हो रहे थे जिसके बाद पश्चिमी देशों ने केएमटी को हथियार और पैसों की मदद दी ताकि वे जापान और कम्युनिस्टों से लड़ सके।

कम्युनिस्टों की सामाजिक पकड़

जापान अपनी मुख्य सेना सदैव केएमटी के खिलाफ लाता था क्योंकि स्पष्ट रूप से चीन में राष्ट्रवादियों की सरकार ही थी जिसके कारण केएमटी को बहुत नुकसान हुआ | युद्ध में कोई भी सेना जब अपने निर्धारित क्षेत्र से पीछे हटती जाती थी तो वह वहां के खेतों में आग लगा देती थी और उस क्षेत्र के नदी, तालाबों में जहर डाल देती थी ताकि विरोधी सेना वहां के संसाधनों का उपयोग ना कर सके, इस तकनीक "झुलसे हुए पृथ्वी की रणनीति" कहा जाता था| राष्ट्रवादियों की इस तकनीक के कारण स्थानीय लोगों में उनके खिलाफ नकारात्मक छवि प्रस्तुत हो गई और उनका झुकाव कम्युनिस्टों की तरफ बढ़ने लगी। दूसरी ओर कम्यूनिस्ट पार्टी के लोग गुरिल्ला युद्ध किया करते थे जिसमें स्थानीय नागरिक कम से कम हताहत होते थे इसलिए अब लोग कम्युनिस्टों से खुश रहने लगे थे।
माओ ज़ेडॉन्ग ने स्थानीय किसानों को यह विश्वास दिलाया कि
कम्यूनिस्ट पार्टी उन्हें जमीन दिलवाएगी, उन्होंने यह वादा किया कि वे शिक्षा का प्रसार करेंगे | माओ ज़ेडोंग लोगों के सामने एक बड़े नेता के रूप में उभर कर आये |

चीन में गृह युद्ध का दूसरा चरण 

वर्ष 1945 में परमाणु हमले के पश्चात जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया जिसके पश्चात वर्ष 1937 में बना संयुक्त मोर्चा पुनः राष्ट्रवादियों और कम्युनिस्टों में विभक्त हो गया है। सोवियत संघ ने मंचूरिया क्षेत्र और आत्मसमर्पित जापानी सेना को केएमटी को सौंपने की बजाए सीपीसी को सौंप दिया जिससे कम्युनिस्टों की सेना पहले से और ज्यादा प्रतिस्पर्धी हो गई। अमेरिका ने दोनों पक्षों को सुलह करवाने का प्रयास किया लेकिन वह विफल रहा| शक्तिशाली सेना के साथ कम्युनिस्टों ने अगले 3 वर्षों में पूरे चीन को जीत लिया और च्यांग काई-शैक सहित राष्ट्रवादियों को अपने प्राणों की रक्षा के लिए फारमूसा नामक द्वीप पर जाना पड़ा जिसे वर्तमान समय में ताईवान के नाम जाना जाना है | चियांग काई शेक ने ताईवान को चीन गणराज्य (आरसी) घोषित कर दिया, इसके विपरीत 1 अक्टूबर 1949 को माओ ज़ेडांग ने चीन को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) घोषित कर दिया।

इस प्रकार की चीनी क्रांति का अंत दो अलग-अलग मुल्कों के बनने से हुआ|

धन्यवाद
गौरव कुमार